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World Heart Day 2023: हार्ट की बीमारियों का खतरा बढ़ाने वाले रिस्क फैक्टर्स कौन-कौन से हैं? जानें डॉक्टर से

हार्ट की बीमारियों का खतरा बढ़ाने वाले कई फैक्टर्स ऐसे हैं, जिन्हें पूरी तरह से कंट्रोल किया जा सकता है और हार्ट के रोगों से बचा जा सकता है।

Anurag Anubhav
Written by: Anurag AnubhavUpdated at: Sep 22, 2023 14:53 IST
World Heart Day 2023: हार्ट की बीमारियों का खतरा बढ़ाने वाले रिस्क फैक्टर्स कौन-कौन से हैं? जानें डॉक्टर से

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Risk Factors of Heart Diseases in Hindi: क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में होने वाली लगभग एक तिहाई मौतों की अकेली कारण कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होती हैं? जी हां, World Heart Federation की मानें, तो पूरी दुनिया में 50 करोड़ से ज्यादा लोग कार्डियोवस्कुलर बीमारियों का शिकार हैं। साल 2021 में इन बीमारियों के कारण 2.05 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। कार्डियोवस्कुलर बीमारियों में सबसे आम हार्ट अटैक है। हार्ट इंसान के सबसे संवेदनशील अंगों में से एक है इसलिए इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यही कारण है कि हार्ट हेल्थ के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए दुनियाभर में हर साल 29 सितंबर को World Heart Day (विश्व हृदय दिवस) मनाया जाता है। हार्ट डे 2023 (Heart Day 2023) के मौके पर आज हम आपको बता रहे हैं हार्ट की बीमारियों का खतरा बढ़ाने वाले आम रिस्क फैक्टर्स क्या हैं। विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमने बात की मैक्स सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक कुमार (Dr. Viveka Kumar) से। 

कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के रिस्क फैक्टर्स

डॉ. विवेक बताते हैं, "कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के ज्यादातर रिस्क फैक्टर्स को आसानी से मैनेज किया जा सकता है मगर बहुत से लोग इसे तब तक नजरअंदाज करते रहते हैं, जब तक कि इससे जुड़ी कोई समस्या नहीं शुरू हो जाती। अगर किसी व्यक्ति के परिवार में कार्डियोवस्कुलर बीमारियों का इतिहास है, तो उसे इन रिक्स फैक्टर्स को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, ताकि वो हार्ट की बीमारियों से बच सके।"

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1. व्यवहारिक कारक (Behavioural Factors)

ये वो कारक होते हैं, जो पूरी तरह व्यक्ति के कंट्रोल में होते हैं। इन दिनों ज्यादातर लोगों में हार्ट से जुड़ी बीमारियों का कारण यही कारक होते हैं। अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, खासकर हार्ट की बीमारियों से दूर रहना चाहते हैं, तो आपको इन रिस्क फैक्टर्स से दूर रहना चाहिए। ये व्यवहारिक कारक निम्न हैं।

  • सोडियम (नमक) का बहुत ज्यादा सेवन करना
  • फिजिकल एक्टिविटी (एक्सरसाइज, योगासन, वॉक, जॉगिंग आदि) न करना
  • एल्कोहल पीना
  • तंबाकू का सेवन
  • धूम्रपान (स्मोकिंग) करना

2. मेटाबॉलिक कारक (Metabolic Factors)

ये वो फैक्टर्स होते हैं, जो व्यवहारिक फैक्टर्स पर ध्यान न देने के कारण पैदा होते हैं और व्यक्ति को धीरे-धीरे हार्ट की बीमारियों की तरफ धकेलते जाते हैं। इन्हें कंट्रोल करना भी कुछ हद तक व्यक्ति के हाथ में होता है। अगर इन रिस्क फैक्टर्स को शुरुआती अवस्था में (जब इनका पता चले) कंट्रोल कर लिया जाए, तो गंभीर कार्डियोवस्कुलर बीमारियों (हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक आदि) के खतरे को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। ये मेटाबॉलिक रिस्क फैक्टर्स निम्न हैं।

  • हाई ब्लड प्रेशर
  • हाई फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज
  • हाई बॉडी मास इंडेक्स (मोटापा)
  • हाई LDL कोलेस्ट्रॉल (बैड कोलेस्ट्रॉल)
  • हाई ब्लड शुगर (डायबिटीज)

3. पर्यावरणीय कारण (Environmental Factors)

ऊपर बताए गए फैक्टर्स के अलावा हार्ट की बीमारियों के कुछ पर्यावरणीय कारण भी हो सकते हैं, जिनपर व्यक्ति का ज्यादा कंट्रोल नहीं होता। आमतौर पर ये फैक्टर्स ऊपर बताए गए दूसरे फैक्टर्स के मुकाबले धीरे-धीरे बीमारी की तरफ धकेलते हैं, मगर इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुछ परिस्थितियों में ये फैक्टर्स व्यवहारिक और मेटाबॉलिक फैक्टर्स के साथ मिलकर व्यक्ति को जल्दी कार्डियोवस्कुलर बीमारियों की तरफ ले जा सकते हैं। ये पर्यावरणीय कारक निम्न हैं।

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  • वायु प्रदूषण
  • फर्टिलाइजर्स और कीटनाशकों के प्रयोग से उगाई गई फल सब्जियों का सेवन
  • गंदे पानी से सींच कर उगाए गए फल सब्जियों का सेवन
  • औद्योगिक प्रदूषण (केमिकल फैक्ट्री, केमिकल इंडस्ट्री आदि में काम करने के कारण)
  • घरेलू प्रदूषण

4. अनुवांशिक कारण (Genetic Factor)

अनुवांशिक कारण में ऐसी बीमारियां आती हैं, जो व्यक्ति को अपने जीन्स के जरिए जन्म के समय से ही मिल जाती हैं। इस फैक्टर पर व्यक्ति का कोई कंट्रोल नहीं होता। मगर ऊपर बताए गए सभी कारकों से बचाव करके और समय-समय पर हार्ट की हेल्थ का पता लगाने वाली जांच कराकर व्यक्ति इस फैक्टर को कंट्रोल कर सकता है।

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कुल मिलाकर सभी रिस्क फैक्टर्स पर अगर सही समय पर ध्यान दिया जाए, तो इन्हें कंट्रोल किया जा सकता है। ध्यान रखें, कार्डियोवस्कुलर बीमारियां आज से कुछ दशक पहले तक वृद्ध लोगों की बीमारी समझी जाती थी, मगर आज बहुत युवा लोग, यहां तक कि बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं और मौत के मुंह में जा रहे हैं। इसलिए इन रिक्क फैक्टर्स को नजरअंदाज न करें। अगर आपको ये लेख पसंद आया, तो इसे दूसरों के साथ भी शेयर करें। सेहत से जुड़े ऐसे और लेख पढ़ने के लिए ओनलीमायहेल्थ के साथ जुड़े रहें।

Facts & Information: World Heart Federation

Inputs: Dr. Vivek Kumar, Senior Cardiologist, Max Superspeciality Hospital

Images Credit: Freepik

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